शिव खप्पर पूजा - जानिए पूजा विधि कथा एवं महत्व




 शिव खप्पर पूजा विधि कथा एवं महत्व:-

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शिव रात्रि में शिव खप्पर पूजा करना अति आवश्यक हे खप्पर पूजा शिव रात्रि के दूसरे दिन की जाती हे एवं पंचांग में भी इस त्योहार का समय दिया हे ( कुछ पंचांगों में नही दिया जाता ) शिव रात्रि पूजा खप्पर पूजा के बगैर अधूरी हे या ये कहें शिव रात्रि पूजा खप्पर पूजा के बगैर पूर्ण हो ही नही सकती।

शिव खप्पर पूजा करने पर आपके जीवन में भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों तरह का परिवर्तन परिलक्षित होगा I वह धन-धान्य, सुख-सौभाग्य से परिपूर्ण होकर श्रीवान एवं ऐश्वर्यवान बन जाता है I इसके साथ ही साथ आपके शत्रु का स्वत: ही शमन हो जायेगा।

शिव खप्पर पूजा तो जीवन को पूर्णता देने वाली होती है जिसके द्वारा साधक को एक के पश्चात् एक धन के स्त्रोत मिलने आरम्भ हो जाते हैं I अगर वह नौकरी पेशा है तो काई नया मार्ग मिल जाता है या पैतृक धन आदि के द्वारा धन प्राप्ति का नया मार्ग खुल जाता है।

व्यापारी है तो व्यापार में लाभ की स्थिति या नये व्यापार में लाभ की स्थिति बनती है या शेयर मार्केट में एकदम से लाभ मिल जाता है। कहने का तात्पर्य है कि धन प्राप्ति के इतने मार्ग या तो खुल जाते हैं या तो सूझने लगते हैं कि साधक आश्चर्यचकित रह जाता है।

जिस प्रकार आप आनंदयुक्त ऐसा ही जीवन आपको प्राप्त हो, और आपका जीवन निश्चिन्ता, निर्भिकता और ऐश्वर्य से परिपूर्ण हो। इस पूजा का प्रभाव पूजा आरम्भ करने से अनुभव होने लग जाता है। तन्त्र बाधाएँ स्वयं समाप्त होने लग जाती है, परिस्थितियों में अनुकूलता आने लग जाती है, शत्रु आपसे सहयोग करने लगता है और आप तीव्रता के साथ अपने लक्ष की ओर गतिशील होने लगते हैं।



शिव खप्पर पूजा के लिये सर्वप्रथम आपको प्रातः अपने घर पर योगी को आमंत्रित करना होगा ( मांस मदिरा का सेवन करने वाला योगी ना हो ) क्योंकि शिव की पूजा लेने का अधिकार सिर्फ सन्यासी और नाथ को ही हे क्योंकि शिव जी योगी नाथ थे और योगी शिव के लिये अपने पुत्र कार्तिकेय से भी अधिक प्यारा हे।

साधारण पूजा विधि - प्रातः काल एक शिव जी के नाम की ज्योत जलाएं ईशान कोण की तरफ मुख करके योग साधना की मुद्रा में बैठ जाएं एक पांच मुखी रुद्राक्ष लें गंगाजल से स्नान कराएं चन्दन का लेप करें रुद्राक्ष को अपने बाएं हाथ के ऊपर दाहें हाथ की हथेली पर रुद्राक्ष रख कर इक्षानुसार ॐ का जप करे जब तक आपकी इन्द्रियाँ चाहें या आप अपने प्रभु के लिये जितना समय दे सकते हें उतना दें।

पूजा संपन्न होने पर ( रुद्राक्ष को धारण भी कर सकते हें या धन के स्थान पर काले कपड़े में लपेट कर रख दें ) घर आये हुए योगी से डमरू नाद एवं शंख बजाने के लिये कहे जिससे घर का वातावरण शुद्ध होगा एवं हमारे भोले भंडारी भी अति प्रसन्न होंगे और वो जब योगी के द्वारा बजाए गये डमरू से प्रसन्न होते हें तो अवश्य ही साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हें।

आप योगी को अपनी इक्षानुसार भोजन कराएं एवं योगी से आशीर्वाद लेकर अपनी इक्षानुसार धन धान का दान देकर प्रेम पूर्वक विदा करें और जाते हुये योगी से कहें कि आप जल्दी आना । प्रभु श्री कृष्ण भी इस पूजा को विधि पूर्वक किया करते थे और यह प्रथा आज भी मथुरा छेत्र में प्रचलित हे। ब्राह्मण से लेकर सभी वर्ण के लोग शिव रात्रि पूजा को संपन्न करते हें। महायोगी बाबा भोले नाथ आपका कल्याण करें।



यहां अन्नपूर्णा देवी ने भरा भोलेनाथ का खप्पर, जानिये म‍हाशिवरात्रि के बाद की इस पूजा का महत्व:-

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महाशिवरात्रि पर भगवान आशुतोष की आराधना के बाद रविवार को खप्पर पूजा का आयोजन शिवालयों में किया जा रहा है। शिव मंदिरों के अलावा आस्‍थावान लोग घर में भी खप्‍पर पूजन करते हैं। द्वार पर आने वाले साधुओं को शिव का प्रतिनिधि मान लोग भेंट देते हैं और उनके हाथ में लगे कटोरे नुमा लकड़ी के खप्‍पर को कढ़ी एवं चावल से भरते हैं। ब्रज में प्रचलित इस पूजा के कई मायने हैं।  


पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि भगवान शंकर का परिवार बहुत बड़ा था। जिसमें मां पार्वती, गणेशजी के अलावा सर्प, नंदी, गणेशजी, गणेशजी का मूसक, मां पार्वती का सिंह था। लेकिन भगवान के पास तो भांग के अलावा कुछ भी नहीं था। वे भस्म लगाते थे और श्मशान में रहते थे। लेकिन शिव के परिवार के अन्‍य सदस्‍यों को तो भूख लगती ही थी। भोजन को लेकर परिवार में आपस में झगड़ा होने लगा। सभी भूखे थे तो भगवान शंकर पार्वती जी के पास जो कि अन्नपूर्णा थीं, उनके पास भिक्षा मांगने गए। भगवान भोलेनाथ ने मां अन्नपूर्णा से कहा: 


अन्नपूर्णे सदा पूर्णे, शंकर प्राण बल्लभे।

ज्ञान, वैराग्य सिध्यर्थम्, भिक्षाम् देहि पार्वती ।।




भोलेनाथ बोले हे जगज्जननी मेरे पूरे परिवार में भूख को लेकर कलह हो रहा है..सब भूखे हैं। तो पार्वती जी ने भगवान शंकर के पास जो खप्पर था उसको अन्न से भर दिया। वह खप्पर आज तक खाली नहीं हुआ है। आज सारी सृष्टि का पालन मां अन्नपूर्णां इसी खप्पर के माध्यम से भरण पोषण कर रही हैं.. 


शिव हुए ब्रज की धरा पर पदार्पित 

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यूं तो शिव के मंदिर भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक हैं लेकिन ब्रजमण्डल के शिव मंदिरों की कुछ खास ही बात है। कई मंदिर यहां ऐसे हैं जिनके बारे में जनश्रुति है कि भगवान शिव यहां पदार्पित हुए थे।


कहते हैं कि द्वापर युग में भगवान शिव कई बार ब्रजआए थे। यहां तीन ऐसे मंदिर हैं जो पांच हजार साल से भी ज्यादा पुराने बताये जाते हैं। मथुरा का रंगेश्वर महादेव, वृंदावन का गोपेश्वर महादेवऔर नंदगांव का आश्वेश्वरमहादेव मंदिर भोले भंडारी से सीधे जुड़े हुए माने जाते हैं।


नंदगांव के आश्वेश्वर मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण को जब वसुदेव नंद के यहां छोड़ गए तो भगवान शिव उनके दर्शन करने यहां पधारे थे। योगी के वेश में आए भोलेनाथ को माता यशोदा पहचान नहीं सकीं और उन्होंने बालक कृष्ण के दर्शन कराने से मना कर दिया। कहते हैं कि इस पर नाराज होकर भगवान शिव उसी जगह धूनी रमाकर बैठ गए थे और अंतत: यशोदा को अपने लाल को उन्हें दिखाना पड़ा था।


ब्रज के एक और मंदिर का महादेव से पुराना नाता बताया जाता है। वृंदावन के गोपेश्वर महादेव मंदिर के बारे में महामण्डलेश्वर डॉ. अवशेष स्वामी का कहना है कि प्राचीन कथानकों के अनुसार राधा और श्रीकृष्ण यहां महारास कर रहे थे। उन्होंने गोपियों को आदेश दे रखा था कि कोई पुरुष यहां नहीं आना चाहिये। उसी वक्त भगवान शिव उनसे मिलने वहां पहुंच गये। गोपियों ने आदेश का पालन करते हुये महादेव को वहां रोक लिया और कहा कि स्त्री वेश में ही वह अंदर जा सकते हैं। इसके बाद महादेव ने गोपी का रूप धरकर प्रवेश किया लेकिन श्रीकृष्ण उन्हें पहचान गये। भगवान शिव के गोपी का रूप लेने की वजह से ही इस मंदिर का नाम गोपेश्वर महादेव मंदिर है. 


खप्‍पर पूजा का विशेष महत्‍व:-

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रंगेश्वर महादेव मंदिर में खप्पर एवं जेहर पूजा का विशेष महत्व है। खप्पर पूजा महाशिवरात्रि के बाद अमावस्या को होती है। वहीं, जेहर पूजा महाशिवरात्रि के दिन नवविवाहिता महिलायें पुत्र की प्राप्ति के लिए करती हैं।।

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