भगवान विष्णु शेषनाग पर क्यों शयन करते हैं, और क्या सच में पृथ्वी उनके फन पर टिकी है?
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता हैं और हर युग में उन्होंने मानव जाति को मार्गदर्शन देने के लिए अवतार लिया है। उनका वाहन गरुड़ है, लेकिन शेषनाग का उनके जीवन और अवतारों में विशेष स्थान है। शेषनाग पर विष्णु के शयन और पृथ्वी के उनके फन पर टिके होने के प्रतीक को लेकर अनेक मान्यताएं और गूढ़ रहस्य हैं।
विष्णु का शेषनाग पर शयन
भगवान विष्णु को क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करते हुए दिखाया जाता है। धर्मशास्त्रों में उनके शांत, आनंदमय और सात्विक स्वरूप का वर्णन मिलता है। साथ ही, शेषनाग, जो काल और ऊर्जा का प्रतीक हैं, पर विष्णु का शयन इस बात का प्रतीक है कि वे समय और विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य, शांति और संतुलन बनाए रखते हैं।
शास्त्रों में इस स्वरूप को "शान्ताकारं भुजगशयनं" कहा गया है, जिसका अर्थ है—भगवान विष्णु शांत स्वरूप में सर्पराज शेषनाग पर शयन करते हैं। यह संदेश देता है कि जीवन की तमाम चुनौतियों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के बावजूद संयम और धैर्य बनाए रखना चाहिए। शेषनाग की उपस्थिति जीवन की कठिनाइयों और काल के रूप में देखी जा सकती है, जबकि विष्णु का शांत और निश्चिंत रहना प्रेरणा देता है कि समस्याओं से घबराने के बजाय उन्हें संतुलित मन से सुलझाया जाए।
शेषनाग और पृथ्वी
पुराणों के अनुसार, शेषनाग ने ब्रह्मा के आदेश पर पृथ्वी को अपने फन पर धारण किया है। हालांकि यह प्रतीकात्मक रूप से कहा गया है, इसका वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों अर्थ निकाला जा सकता है।
शेषनाग को धरती के चुंबकीय क्षेत्र (भुचुंबकत्व) का प्रतीक माना गया है, जो ग्रह के संतुलन और स्थिरता को बनाए रखता है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि जब शेषनाग अपनी स्थिति बदलते हैं, तो धरती पर भूकंप आता है। यह वर्णन आधुनिक विज्ञान में भूकंपीय तरंगों और पृथ्वी के कोर की गतिकी के समान प्रतीत होता है।
पृथ्वी की संरचना में, उसके क्रोड का विस्तार 2890 किमी से पृथ्वी के केंद्र तक है। यह क्रोड बाह्य और आंतरिक परतों में विभाजित है। बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और भूकंपीय तरंगों को प्रभावित करता है। वैदिक ग्रंथों में शेषनाग को इसी भुचुंबकत्व के रूप में चित्रित किया गया है, जो पृथ्वी को स्थिर रखता है।
शेषनाग और विष्णु का शाश्वत संबंध
भगवान विष्णु और शेषनाग का संबंध अटूट है। त्रेता युग में शेषनाग ने लक्ष्मण का रूप धारण किया और भगवान राम की सहायता की। द्वापर युग में वे बलराम के रूप में कृष्ण के सहायक बने। यहां तक कि जब वसुदेव बालकृष्ण को यमुना पार करवा रहे थे, तब भी शेषनाग ने अपने फन से उन्हें बारिश से बचाया।
शेषनाग न केवल विष्णु के रक्षक हैं, बल्कि वे समय, ऊर्जा और ग्रहों की स्थिरता के प्रतीक हैं। यह संबंध मानव जीवन में संतुलन और धैर्य का मार्गदर्शन करता है।
निष्कर्ष
भगवान विष्णु का शेषनाग पर शयन और पृथ्वी का उनके फन पर टिके होने का प्रतीक हमें यह सिखाता है कि जीवन में विपरीत परिस्थितियों और चुनौतियों के बीच संतुलन, शांति और धैर्य बनाए रखना चाहिए। यह आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी गहन महत्व रखता है। शेषनाग और विष्णु का यह स्वरूप समय और ऊर्जा का मार्गदर्शन है, जो हमें हर पल प्रेरित करता है।
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