पढिए - माघी पूर्णिमा व्रत कथा और महत्व

माघ मास की पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। यह माघ मास का अंतिम दिन है और इसके बाद से फाल्गुन का महीना शुरू हो जाएगा। फाल्गुन के महीने की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है, अब माघी पूर्णिमा से एक महीने बाद होली का त्योहार मनाया जाएगा। माघी पूर्णिमा पर स्नान और दान का विशेष महत्व बताया गया है।


इस दिन गंगा स्नान का कई गुना लाभ मिलता है। कहते हैं कि भगवान हरि इस दिन खुद गंगा जल में निवास करते हैं। पद्मपुराण के अनुसार बाकी के महीनों में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि वे माघ मास में स्नान करने से होते हैं। इसके अलावा इस महीने में तिल और कंबल का दान भी श्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन पितरों का स्मरण भी करना चाहिए। माघी पूर्णमा पर ही कल्पवासी प्रस्थान करते हैं। कल्पवास के बाद सभी विधि-विधान से गंगा स्नान कर सत्यनारायण की पूजा करते हैं।


व्रत कथा


पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय की बात है एकबार विष्णु भक्त नारद जी ने भ्रमण करते हुए मृत्युलोक के प्राणियों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार तरह-तरह के दुखों से परेशान होते देखा। इससे उनका संतहृदय द्रवित हो उठा और वे वीणा बजाते हुए अपने परम आराध्य भगवान श्रीहरि की शरण में हरि कीर्तन करते क्षीरसागर पहुंच गये और स्तुतिपूर्वक बोले, ‘हे नाथ! यदि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो मृत्युलोक के प्राणियों की व्यथा करने वाला कोई छोटा-सा उपाय बताने की कृपा करें।’ तब भगवान ने कहा, ‘हे वत्स! तुमने विश्वकल्याण की भावना से बहुत सुंदर प्रश्न किया है। अत: तुम्हें साधुवाद है। आज मैं तुम्हें ऐसा व्रत बताता हूं जो स्वर्ग में भी दुर्लभ है और महान पुण्यदायक है तथा मोह के बंधन को काट देने वाला है और वह है श्रीसत्यनारायण व्रत। इसे विधि-विधान से करने पर मनुष्य सांसारिक सुखों को भोगकर परलोक में मोक्ष प्राप्त कर लेता है।’

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