शनिदेव के साथ क्यों करते हैं पीपल की पूजा?’


 शनिदेव, सूर्य और छाया के पुत्र हैं, लेकिन उनका एक पैर टूटा हुआ है। बहुत समय पहले एक महर्षि दधीचि थे, उनके पुत्र थे पिप्पलाद। एक बार पिप्पलाद की क्रोध भरी दृष्टि के प्रकोप से शनिदेव सीधे नीचे जमीन पर आ गिरे और उनका एक पैर टूट गया।


पुराणों में वर्णित है कि यह घटना त्रेतायुग की है। धरती पर एक बार भयानक अकाल पड़ा। इस अकाल में ऋषि दधीचि और उनके पुत्र को भी हानि उठानी पड़ी।


उनका पूरा परिवार अकाल में मारा गया। एक दिन आकाश में भ्रमण कर रहे देवर्षि नारद ने ऋषि दधीचि को देखा। उनकी दशा दीन-हीन थी। तब वह उनसे मिले और उनसे श्रीहरि की पूजा करने का आग्रह किया। फिर ऋषि दधीचि पूरे मन से श्रीहरि की पूजा करने लगे, उनकी पूजा से श्रीहरि प्रसन्न हुए और उन्हें स्वास्थ्य, ज्ञान और संतान के वर दिए।


ऋषि ने अपना घर बसाया और प्रभु की भक्ति में लीन हो गए। समय बीतता गया और उनके घर में पिप्पलाद जन्मे जो आगे चलकर ऋषि पिप्पलाद के नाम से प्रसिद्ध हुए। पिप्लाद बचपन में ही अनाथ हो गए और उनका जीवन कष्टों से भर गया।


एक दिन पिप्लाद को पता चला कि उनकी परेशानियों का कारण शनिदेव हैं। तब उनको काफी गुस्सा आया और उन्होंने आसमान में भ्रमण कर रहे शनिदेव को क्रोध भरी नजरों से देखा।


तब शनिदेव सीधे धरती पर गिर गए और उनका एक पैर टूट गया। पिप्पलाद शनिदेव को श्राप देने ही वाले थे, कि वहां ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उन्होंने पिप्पलाद को बताया कि इस पूरे घटनाक्रम में शनिदेव की कोई गलती नहीं है, बल्कि यह विधि का विधान है।


तब ब्रह्माजी ने पिप्पलाद से कहा जो भी शनिभक्त पिप्पलाद (पीपल) का मन में ध्यान रखते हुए शनिदेव की पूजा-अर्चना और आराधना करेगा। उसे शनिदेव की कृपा जल्द प्राप्त होगी।

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