जानकी जयंती: इस दिन सीता जी प्रकट हुई थीं, मां सीता से पूर्ण होते हैं प्रभु राम

 

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जानकी व्रत का पर्व है। इसे जानकी जयंती के रूप में भी मनाते हैं। मान्यता है कि इस दिन सीता जी प्रकट हुई थीं। राजा जनक की पुत्री होने के कारण माता सीता ने पूरे जीवन काल में विवेक और प्रेम को केंद्रीय भाव बनाया। उन्होंने सदैव भोग और भूख से ऊपर उठकर विचार किया। श्रीराम की संपूर्णता माता सीता है, तो सीता की पूर्णता का प्रतिरूप श्री राम हैं। दोनों अकेले हैं, लेकिन साथ भी हैं।


यही आधुनिक समाज के लिए सीख है। भारतीय परंपरा में इस निष्ठा का कई बार गरिमापूर्ण तरीकेसे पुनर्पाठ किया गया है। माता सीता अकेले ही वन में रहकर अपने बच्चों का लालन पालन करती हैं और सर्वश्रेष्ठ बनाती हैं। उसी परंपरा में माता कुंती ने पांच पांडवों को पाला। भरत की माता शकुंतला हों या छंदोग्य उपनिषद मेंसत्यकाम की माता जाबाला। सबने जीवन के दुख और पीड़ा की अवधि में अपने विवेक को स्थान दिया। कदाचित इसीलिए माता का स्मरण प्रभु के पूर्व करने की परंपरा बन गयी। 



भले ही रावण ने माता सीता को बंदी किया हो, लेकिन उनका मन न बंदी रहा और न ही वन के सीमित दायरे में बंधा रहा। वह स्वतंत्र थीं और सदैव ही स्वतंत्र तथा पूर्ण रहीं। उनकी पूर्णता इस कथा से भी उजागर होती है कि जब हनुमान प्रभु श्रीराम की अंगूठी की खोज में पाताल लोक गये, तो वासुकी ने उनको रोक लिया। उन्होंने हनुमान से कहा कि अंगूठी बाद में खोजिएगा। पहले यह बताइये कि ये सीता कौन है? प्रत्येक वृक्ष और पौधे की जड़, जो धरती के अंदर आती है, बस एक ही नाम को सदैव ध्यान करती है, बुदबुदाती रहती है - सीता...। वह कौन हैं? इस संदर्भ में लोकश्रुति है कि सीता के धरती गमन के समय प्रभु श्रीराम के हाथ में उनके कुछेक बाल ही रह गए। वे ही, आज इस वसुधा पर समस्त पादप, पौधे, वृक्ष और लता के रूप में हैं, जो सदैव माता के नाम का स्मरण करते रहते हैं।


रावण के लोभ ने पहली बार सीता को राम से अलग किया। दूसरी ओर अयोध्या के लोगों की सामान्य सोच ने राम से माता को विलग कराया। लेकिन माता कहां अलग हो पायी? सदैव राम के साथ और राम के पूर्व ही स्वर और शब्दों में रहीं। कहते हैं कि भगवती पार्वती ने महादेव से निवेदन किया कि वह कोई ऐसी कथा कहें, जो हर प्रकार के दुख और क्लेश में संतुष्टि प्रदान करें। जीवन को पूर्णता की ओर अग्रसर करे। तब पहली बार इस धरती पर भगवान भोलेशंकर ने माता पार्वती को सीताराम की कथा सुनाई। जीवन के उतार-चढ़ावों और असंतोष में केवल रामायण ही शाश्वत शांति और संतोष प्रदान करती है। 

कदाचित इसी कारण यह मान्यता बन गयी है कि हरेक समय के चक्र में माता सीता और श्री राम वन और महल में रहने आते हैं, ताकि कर्म और ज्ञान के बीच के समन्वय का उदाहरण बनकर प्रेम और चरित्र की एक अनुपम मर्यादा स्थापित की जा सके।  

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