महाकाली [दक्षिण काली] साधना विवरण
भगवती कालिका अर्थात काली के अनेक स्वरुप, अनेक मन्त्र तथा अनेक उपासना विधियां है। यथा-श्यामा, दक्षिणा कालिका (दक्षिण काली) गुह्म काली, भद्रकाली, महाकाली आदि । दशमहाविद्यान्तर्गत भगवती दक्षिणा काली (दक्षिणकालीका) की उपासना की जाती है।
दक्षिण कालिका के मन्त्र :-
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-भगवती दक्षिण कालिका के अनेक मन्त्र है, जिसमें से कुछ इस प्रकार है।
(1) क्रीं,
(2) ॐ ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं।
(3) ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।
(4) नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा।
(5) नमः आं क्रां आं क्रों फट स्वाहा कालि कालिके हूं।
(6) क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रींह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा। इनमें से कीसी भी
मन्त्र का जप किया जा सकताहै।
पूजा -विधि :-
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दैनिक कृत्य स्नान-प्राणायम आदि से निवृत होकरस्वच्छ वस्त्र धारण कर, सामान्य पूजा-विधि से काली- यन्त्र का पूजन करें।
तत्पश्चात ॠष्यादि- न्यास एंव करागन्यास करके भगवती का इस प्रकार
ध्यान करें-
ध्यान
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शवारुढां महाभीमां घोरदृंष्ट्रां वरप्रदाम्।
हास्य युक्तां त्रिनेत्रां च कपाल कर्तृकाकराम्।
मुक्त केशी ललजिह्वां पिबंती रुधिरं मुहु:।
चतुर्बाहूयुतां देवीं वराभयकरां स्मरेत्॥”
इसके उपरान्त मूल-मन्त्र द्वारा व्यापक-न्यास करके यथा विधि मुद्रा-प्रदर्शन पूर्वक पुनः ध्यान करना चाहिए।
पुरश्चरण👉 कालिका मन्त्र के पुरश्चरण में दो लाख की संख्या में मन्त्र-जप कियाहै।
कुछ मन्त्र केवल एक लाख की संख्या में भी जपे जाते है।
जप का दशांश होमघृत द्वारा करना चाहिए ।
होम का दशांश तर्पण, तर्प्ण का दशांश अभिषेक तथाअभिषेक का दशांश ब्राह्मण – भोजन कराने का नियम है।
विशेष👉 ” दक्षिणाकालिका “ देवी के मन्त्र रात्रि के समय जप करने से शीघ्र सिद्धि प्रदानकरते है।
जप के पश्चात स्त्रोत, कवच, ह्रदय आदि उपलब्ध है, उनमें से चाहेंजिनका पाठ करना चाहिए ।
वे सभी साधकों के लिए सिद्धिदायक है।
परिचय- दुर्गाजी का एक रुप कालीजी है।
यह देवी विशेष रुप से शत्रुसंहार, विघ्ननिवारण, संकटनाश और सुरक्षा की अधीश्वरी है।
यह तथ्य प्रसिद्ध है कि इनकी कृपा मात्र से भक्त को ज्ञान, सम्पति, यशऔर अन्य सभी भौतिक सुखसमृद्धि के साधन प्राप्त हो सकते है, पर विशेष रुप सेइनकी उपासन्न सुरक्षा, शौर्य, पराक्रम, युद्ध, विवाद और प्रभाव विस्तर के संदर्भ में की जाती है। कालीजी की रुपरेखा भयानक है।
देखकर सहसा रोमांच होआता है। पर वह उनका दुष्टदलन रुप है।
भक्तों के प्रति तो वे सदैव ही परम दयालु और ममतामयी रहती है।
उनकी पूजाके द्वारा व्यक्ति हर प्रकार की सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त कर सकता है।
लाल आसन पर कालीजी की प्रतिमा अथवा चित्र या यन्त्र स्थापित करके, लालचन्दन, पुष्प तथा धूपदीप से पूजा करके मन्त्र जप करना चाहिए।
नियमत रुप सेश्रद्धापूर्वक आराधना करने वालि जनों को कालीजी(प्रायः सभी शक्ति स्वरुप)स्वप्न मे दर्शन देती है।
ऐसे दर्शन से घबङाना नहीं चाहिए और उस स्वप्न कीकहीं चर्चा भी नही चाहिए।
कालीजी की पुजा में बली का विधान भी है।
किन्त सात्विक उपासना की दृष्टि से बलि के नाम पर नारियल अथवा किसी फल का प्रयोग किया जा सकता है।
वैसै, देवी – देवता मात्र श्रद्धा से ही प्रसन्न हो जाते है, ये भौतिकउपादान उनकी दृष्टि में बहुत महत्वपूर्ण नहीं होते ।
कुछ भी न हो और कोईसाधक केवल श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति ही करता रहे, तो भी वह सफल मनोरथ हो सकता है।
धयान स्तुति-
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खडगं गदेषु चाप परिघां शूलम भुशुंडी शिरः
शंखं संदधतीं करैस्तिनयनां सर्वाग भूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्य पाद द्शकां सेवै महाकालिकाम्।
यामस्तौत्स्वपितो हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम्॥
जप मन्त्र-
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ॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिकाय नमः।
प्रार्थना-
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नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै ससतं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै निततां प्रणतां स्मताम्॥
श्री महाकाली यन्त्र
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श्मशान साधना मे काली उपासना का बङा महत्व है। इसी सन्दर्भ मे महाकाली यन्त्र का प्रयोग शत्रु नाश, मोहन, मारण, उच्चाट्न आदि कार्यों में प्रयुक्त होता है।
मध्य मे बिन्दू, पांच उल्ट कोण, तीन वृत कोण, अष्टदल वृतएवं भूरपुर से आवृत महाकाली का यन्त्र तैयार करे।
इस यन्त्र का पूजन करते समय शव पर आरुढ, मुण्ड्माला धारण की हुई, खड्ग, त्रिशूल, खप्पर व एक हाथ मे नर-मुण्ड धारण की हुई, रक्त जिह्वा लपलपाती हुई भयंकर स्वरुप वाली महाकाली का ध्यान किया जाता है।
जब अन्य विद्यायें विफलहो जाती है तब इस यन्त्र का सहारा लिया जाता है।
महाकाली की उपासना अमोघ मानी गई है। इस यन्त्र के नित्य पूजन से अरिष्ट बाधाओं का स्वतः ही नाश होकर शत्रुओ का पराभव होता है।
शक्ति के उपासकों केलिए यह यन्त्र विशेष फलदायी है।
चैत्र, आषाढ, आश्विन एवं माघ की अष्टमी इसकी साधना हेतु सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है।
काली सम्बन्ध में तंत्र-शास्त्र के 250-300 के लगभग ग्रंथ माने गये हैं, जिनमें बहुत से ग्रथं लुप्त है, कुछ पुस्तकालयों में सुरक्षित है ।
अंशमात्र ग्रंथ ही अवलोकन हेतु उपलब्ध हैं । ‘काम-धेनु तन्त्र’ में लिखा है कि – “काल संकलनात् काली कालग्रासं करोत्यतः”।
तंत्रों में स्थान-स्थान पर शिव नेश्यामा काली (दक्षिणा-काली) और सिद्धिकाली (गुह्यकाली) को केवल “काली” संज्ञा से पुकारा हैं ।
दशमहाविद्या के मत से तथा लघुक्रम और ह्याद्याम्ताय क्रम के मत से श्यामाकाली को आद्या, नीलकाली (तारा) को द्वितीया और प्रपञ्चेश्वरी रक्तकाली (महा-त्रिपुर सुन्दरी) को तृतीया कहते हैं, परन्तु श्यामाकाली आद्या काली नहीं आद्यविद्या हैं।पीताम्बरा बगलामुखी को पीतकाली भी कहा है।
कालिका द्विविधा प्रोक्ता कृष्णा – रक्ता प्रभेदतः ।
कृष्णा तु दक्षिणा प्रोक्ता रक्ता तु सुन्दरीमता ।।
काली के अनेक भेद हैं -
पुरश्चर्यार्णवेः-
१👉 दक्षिणाकाली,
२👉 भद्रकाली,
३👉 श्मशानकाली,
४👉 कामकलाकाली,
५👉 गुह्यकाली,
६👉 कामकलाकाली,
७👉 धनकाली,
८👉 सिद्धिकाली तथा
९👉 चण्डीकाली ।
जयद्रथयामलेः-
१👉 डम्बरकाली,
२👉 गह्नेश्वरी काली,
३👉 एकतारा,
४👉 चण्डशाबरी,
५👉 वज्रवती,
६👉 रक्षाकाली,
७👉 इन्दीवरीकाली,
८👉 धनदा,
९👉 रमण्या,
१०👉 ईशानकाली तथा
११👉 मन्त्रमाता।
सम्मोहने तंत्रेः-
१👉 स्पर्शकाली,
२👉 चिन्तामणि,
३👉 सिद्धकाली,
४👉 विज्ञाराज्ञी,
५👉 कामकला,
६👉 हंसकाली,
७👉 गुह्यकाली।
तंत्रान्तरेऽपिः-
१👉 चिंतामणि काली,
२👉 स्पर्शकाली,
३👉 सन्तति-प्रदा-काली,
४👉 दक्षिणा काली,
५👉 कामकला काली,
६👉 हंसकाली,
७👉 गुह्यकाली।
उक्त सभी भेदों में से दक्षिणा और भद्रकाली ‘दक्षिणाम्नाय’के अन्तर्गत हैं तथा गुह्यकाली, कामकलाकाली, महाकाली और महा- श्मशान- काली उत्तराम्नाय से सम्बन्धित है। काली की उपासना तीन आम्नायों से होती है।
तंत्रों में कहा हैं “दक्षिणोपासकः का`लः” अर्थात दक्षिणोपासक महाकाल के समान हो जाता हैं ।उत्तराम्नायोपासाक ज्ञान योग से ज्ञानी बन जाते हैं ।ऊर्ध्वाम्नायोपासक पूर्णक्रम उपलब्ध करने से निर्वाणमुक्ति को प्राप्त करते हैं ।
दक्षिणाम्नाय में कामकला काली को कामकलादक्षिणाकाली कहते हैं ।
उत्तराम्नायके उपासक भाषाकाली में कामकला गुह्यकाली की उपासना करते हैं ।
विस्तृतवर्णन पुरुश्चर्यार्णव में दिया गया है ।
गुह्यकाली की उपासना नेपाल में विशेष प्रचलित हैं । इसके मुख्य उपासकब्रह्मा, वशिष्ठ, राम, कुबेर, यम, भरत, रावण, बालि, वासव, बलि, इन्द्र आदि हुए हैं।
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